SC to hear Kancha Gachibowli tree felling case Apr 16
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SC to hear Kancha Gachibowli tree felling case Apr 16

कंचा गच्चीबौली जंगल में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को करेगा सुनवाई

नई दिल्ली, 14 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को उस मामले की सुनवाई करेगा जिसमें तेलंगाना सरकार से हैदराबाद स्थित कंचा गच्चीबौली जंगल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई को लेकर जवाब मांगा गया है। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि विश्वविद्यालय परिसर से सटे इस हरित क्षेत्र को साफ करने की “तत्काल आवश्यकता” क्या थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 3 अप्रैल को स्वतः संज्ञान (suo motu cognisance) लिया था जब यह जानकारी सामने आई कि यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के पास स्थित कंचा गच्चीबौली के जंगल में पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई की जा रही है। अदालत ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए आदेश दिया था कि अगली सुनवाई तक क्षेत्र में कोई भी गतिविधि, चाहे वह निर्माण की हो या कोई अन्य, पूरी तरह से रोक दी जाए। केवल वहां मौजूद पेड़ों की सुरक्षा से संबंधित कार्यों को ही अनुमति दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक “कॉज लिस्ट” के अनुसार, यह मामला 16 अप्रैल को न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। इस सुनवाई के दौरान अदालत सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगेगी कि इस जंगल क्षेत्र में अचानक से पेड़ काटने की जरूरत क्यों पड़ी, और यह भी कि क्या इस प्रक्रिया में पर्यावरणीय मानकों का पालन किया गया।

इस जंगल क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को लेकर पर्यावरणविदों और स्थानीय नागरिकों में गहरी चिंता है। उनका कहना है कि यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और यहाँ कई दुर्लभ वनस्पतियाँ व जीव-जंतु पाए जाते हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कटाई बिना पर्याप्त अनुमति और वैज्ञानिक मूल्यांकन के की जा रही थी, जो पर्यावरण संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है।

यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद के कई छात्रों और संकाय सदस्यों ने भी इस कार्य के खिलाफ आवाज उठाई है और सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया है। इनका कहना है कि यह क्षेत्र न केवल शैक्षणिक अनुसंधान के लिए उपयोगी है, बल्कि शहरी क्षेत्र में एक “फेफड़े” की तरह कार्य करता है।

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्ती से उम्मीद की जा रही है कि सरकार को जवाबदेह बनाया जाएगा और जंगलों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण हरे-भरे क्षेत्रों का अंधाधुंध दोहन एक खतरनाक प्रवृत्ति बन चुका है, जिससे जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।

अब सबकी नजरें 16 अप्रैल की सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें यह स्पष्ट होगा कि अदालत इस मामले में आगे क्या निर्देश देती है और राज्य सरकार अपनी कार्रवाई को कैसे न्यायोचित ठहराती है।

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